Fark Nahi Padta | फर्क नहीं पड़ता Poem By Jai Ojha - Jhuti Mohabbat
All images used in this blog are licensed under the Creative Commons Zero (CC0) license. Get more information about Creative Commons images and the license on the official license page.

Thursday, September 26, 2019

Fark Nahi Padta | फर्क नहीं पड़ता Poem By Jai Ojha

Fark Nahi Padta | फर्क नहीं पड़ता Poem By Jai Ojha

Heartbreak, I have never felt anything as torturous. The loss of a love you believed to be true can leave you feeling shattered. No matter how independent you believed you were, and how many positive things everyone else believes about you, you may feel like the better half of everything you know has disappeared. At some point, something deep down inside of you will say it’s time to start moving on. Heartbreaks are painful but not once when you're wholeheartedly able to say Farq Nahi Padta out loud.

एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था
अब तो तू खुद मोहब्बत बन चली आए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता

एक वक्त था जब तेरी परवाह किया करता था
अब तो तू मेरे खातिर फना भी हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे हजारों मैसेजेस लिखा करता था
और कोई काम न था मेरा
बस दिन भर तेरा लास्ट सीन देखा करता था
अब तू सुन ले
अब तो अरसा बीत गया है वीजीट किए हुए तेरी पुरानी प्रोफाईल को
जा-जा अब तू चाहे 24 घण्टे ऑन्लाइन रहले अपने नये आईडी पर,
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझसे बिछड़ जाने का डर लगा रहा था
और तू कहीं छोड़ न दे
इस ख्याल में मैं सहमा-सहमा सा रहता था
लेकिन अब सुन तू ले इतना जलील हुआ हूं तेरी इश्क में
इतना जलील हुआ हूं तेरी इन रोज-रोज की छोड़ने-छाड़ने की बातों से कि
अब तू एक क्या
सौ मर्तबा छोड़ जाये तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझ बिन एक पल न रह सकता था
बेचैन गुमशुदा अकेलेपन से डरता था
लेकिन अब तू सुन ले
कि इतना वक्त बीता चुका हूं इस अकेलेपन में कि
अब तो ताउम्र तन्हां रहना पड़ जाये तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे कोई छू लेता तो मेरा खून खौल उठता था
और इसलिए मैं इन हवाओं से बैर पाला करता था
अरे अपने हुस्न के सिवा कुछ नहीं है तेरे पास अगर
तो जा-जा तू किसी के साथ हम बिस्तर भी हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
इतना गुरूर किया तूने अपने इस मिट्टी के जिस्म पर तो
जा-जा ये तेरा जिस्म किसी और का हो जाए
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब पांच वक्त की नमाजें पढ़कर तेरे लिए खुदा से मन्नते मांगता था
अरे मुझे खुद तो कुछ चाहिए न था
सिर्फ तेरे लिए अपने उस खुदा को आजमाता था
लेकिन अब तू सुन ले अब तो ना झुकता हूं
न पूजता हूं न मानता हूं किसी को
अब तो भले तू खुद खुदा बन चली आए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब शेर लिखा करता था तेरे लिऐ और सुनाता था महफिलों में
अरे अब तो अरसे बाद लिखी है ये अधूरी सी कविता तूझ पे
और सुन ले
आगे से कुछ ना भी लिख जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

बताना तुझे मिल जाए मुझ जैसा कोई और अगर
जा-जा तू औरों को आजमा ले
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

एक वक्त था जब तुझे इन हजारों की भीड़ में भी तेरी आईंडी को पहचान लिया करता था
किसी और की डीपी में होती अगर तो एहसासों से पहचान किया करता था
अरे अब तो निगाहों से ओझल किया है मैंने तुझे इस कदर
कि तू मेरी कविता को चोरी-चोरी पढ़ भी रही है तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

खैर फिर भी करता हूं शुक्रिया तेरा
तूझे खोने मैंने बहुत कुछ पा लिया है
नजमें, गजलें, शायरियां सब मिल गई है मुझे
और इन्होंने तो जैसे मुझे गले से लगा लिया है
अब तो मुझे सुनने वाले भी चाहने वाले भी और दाद देने वालें भी है
और कुछ दिन ना लिखू तो फोन करके गुजारिश करवाने वाले भी है
लेकिन अब तू सून ले अब तो इतना बेखौफ हो गया हूं कि अब ये सब भी छोड़ जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

अरे खुद ही में मस्त हो गया है तेरा ये राशिद इतना
अब तो कोई सुनने आए या न आए
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

खैर चाहता तो नहीं था तुझे इस तरह यूं बेनकाब करूं सबके सामने
लेकिन सुन ले एक बेवफा मेरी कलम से बेईज्जत हो जाए तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

याद कर वो वक्त जब एक लफ्ज नहीं सुन पाता था मैं तेरे खिलाफ
और अब देख-देख तेरे इस तौहिन पर तालियों पर तालियां बज रही हैं तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था।।

6 comments:

  1. दर्द ही सही मेरे इश्क़ का इनाम तो आया,
    खाली ही सही हाथों में जाम तो आया
    मैं हूँ बेवफ़ा सबको बताया उसने,
    यूँ ही सही उसके लबों पे मेरा नाम तो आया!

    ReplyDelete
  2. बताना तुझे मिल जाए मुझ जैसा कोई और अगर
    जा-जा तू औरों को आजमा ले
    मुझे फर्क नहीं पड़ता
    एक वक्त था कि तुझसे बेइंतहां प्यार करता था

    ReplyDelete
  3. भूल के भी हमे भूल न पाओगे आयेंगे याद हम जब भी आँखो मे आँशु रोक न पाओगे रूठ कर हमसे दूर जाना चाहते दूर जा के तो देखो हमे और भी करीब पाओगे

    ReplyDelete

Contact Form

Name

Email *

Message *