Friends, if anyone likes poetry, it does not happen to know Dr. Rahat Indori Saheb, because Rahat Indori Sahab has earned so much name in the world of shayari, poetry and ghazal. Dr. Rahat Indori ji is one of the great poets of Urdu world, besides, he is one of the leading lyricists of Hindi world, he was born on 1 January 1950 in Indore, Madhya Pradesh. His father's name was Raftullah Qureshi and mother's name was Maqbool Un Nisha Begum. He received his PhD in Urdu literature from Bhoj Open University of Madhya Pradesh.
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
सरहदों पर तनाव हे क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था
इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं
चलते फिरते हुए मेहताब दिखाएँगे तुम्हे
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखाएँगे तुम्हे
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेश में वो किससे रजाई मांगे
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
सरहदों पर तनाव हे क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था
इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं
चलते फिरते हुए मेहताब दिखाएँगे तुम्हे
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखाएँगे तुम्हे
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेश में वो किससे रजाई मांगे
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते
👌
ReplyDeleteBest shayri 👌 👌
ReplyDeleteAlso check out :- Rahat Indori Shayari
Deletereally heart touching
ReplyDeleteread some heart touching poems here
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Deleteमाशाअल्लाह बहोत खूब
ReplyDelete😍😍😍😍
ReplyDeleteLatest Rahat indori sahab shayari - https://www.miashishayari.com/post/latest-rahat-indori-shayari-collection-2020
ReplyDelete❤👌✌
ReplyDeleteDuniya me likhne wale koi
ReplyDeleteKam nhi hai'n
Par rahat indori jessa likhe,
Kissi me dam nhi hai'n
nice article,excellent shayari..
ReplyDeletefor more RAHAT INDORI SHAYARI Visit Here
😄
DeleteNice collection of shayri
ReplyDeleteमैं गांव बोल रहा हूं ...
ReplyDeleteटूट गया था मैं, अब हौसला बढ़ने की दस्तक आयी है ,
चलो देर से सही, किसी बहाने मेरे यहाँ रौनक तो छायी है ,
तुम मुझे कौड़ियों के भाव बेच कर भागते रहे, फिर भी
मैं तुम्हें खुली बांहों से स्वीकार रहा हूं
मैं तुम्हारा गांव बोल रहा हूं ।।
अकेला तड़पता था मैं तुम्हारी आवाज के खातिर
सुनता था सूनेपन को तुम्हारी छाज के खातिर
ताला जड़ दिया था तुमने मुझपर
अपनी शहरियत की शौक़ के खातिर
मैं सब कुछ भुलाकर तुझे अपना रहा हूं
मैं तुम्हारा गांव बोल रहा हूं ।।
अब लौट आए हो तो यहीं रह जाना
सब कुछ दूंगा तुम्हें , हमारी संतान हो तुम
वो जो मजदूर कहते हैं , उन्हें क्या पता देश की शान हो तुम
बस तुम्हारे आने भर से खिलखिला रहा हूँ
देखो ना मैं जगमगाते दियों सा झिलमिला रहा हूँ
सुनो.... तुम्हारा गांव बोल रहा हूं ।।
Nic
DeleteApi ye bat dil ko chu gyi corona ke tym me apki itni achi soch may gaw bol rha hun wah ji wah
DeleteBahut sundar likha he 👌
Deleteराहत इंदौरी जी ऐसे शायर है जो ना कभी कोई हुआ है ना कभी होगा।
ReplyDeleteYou are right brother
DeleteWell said ....😊😇😎
DeleteRahat Indori Shayari in Hindi https://wikihoo.com/rahat-indori-shayari-in-hindi/
Deleterahat indori is a bast shayar of all time
ReplyDeleteVisit indiaspopular
behed khubsurat post hai. padkar maja aa gaya rahat indori ek bhut behtrin sayar ke rup jane jate hai inki shayri me alag hi baat hoti hai.
ReplyDeleteagar ap shahyi ke shoukin hai to https://www.qoutesrocks.com/ ko ek bar zarur dekhe.
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DeleteHere more rahat indore sayris
ReplyDeletehttps://www.hindistatus1.com/2020/06/best-rahat-indori-rahat-indori-shayari.html
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Deletegreat post bro
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DeleteBhai is blog Se kamai karte ho kya
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Deleteyh uniya yaha jaana nahi: mri fav. lin
ReplyDeleteदिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
ReplyDeleteसब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
Bahut achha
DeleteWaah waah keya keha diya
DeleteTHANKS FOR THAT KIND OF POST PLEASE WRITE MORE POST LIKE THIS post like this
ReplyDeleteSuperrrrr
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DeleteBulati hai magar jaane ka nhi ye bolne wale aaj khud hi chale gaye😐 RIP
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DeleteClick here for more
ReplyDeleteRIP Sir
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DeleteBhut gajab ke likhte the 'Rahat' sahab
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DeleteRead Best Hindi Sad Shayari https://www.nextlyricssong.com/
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DeleteI will miss you.....sir....
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DeleteVisit - www.iamarshh.blogspot.com
ReplyDeletevery nice your shayari
ReplyDeletekumar vishwas shayari
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Deleterahat indori ji ki shayari ka best colletion only on wishestatus
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Delete"बहुत वक्त बीत गया छत पर बैठे एक कोने में वह मंजिल ही नहीं मिली हमें एक साथ होने में"
ReplyDeleteGET RAHAT INDORI SHAYARI WITH IMAGE https://www.feshtiveshayari.com/2020/09/best-of-rahat-indori-shayari-in-hindi.html
ReplyDeleteVery nice poetry. Read More at Urdu Shayariاردو شاعری
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Deletevery long and beautiful collection shayari of Rahat Indori
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DeleteMy fav
ReplyDeleteKamal ki shayari bhai
ReplyDeleteMaza aa gya padhke. Good shayari collection.
Khamoshi shayari Hindi
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DeleteRead more shayari https://lovesahayarihindi.blogspot.com/2020/11/funny-quotes-in-hindi-with-images-for.html?m=1
ReplyDeletehttps://www.urdupoetrytalk.xyz/2020/07/rahat-indori-urdu-shayari-in-hindi.html
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DeleteBahut khub rahat sahab
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Deleteek alag hee andaz h rahat sahab ka
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DeleteCome on
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DeleteRahat Indori Shayari in Hindi https://wikihoo.com/rahat-indori-shayari-in-hindi/
ReplyDeleteRahat Indori Shayari in Hindi https://wikihoo.com/rahat-indori-shayari-in-hindi/
ReplyDeleteVery nice shayri
ReplyDeletehttps://www.thestatusworld.in
ReplyDelete*"जिंदगी एक बार मिलती है"*
ReplyDelete*"बिल्कुल गलत है!"*
*सिर्फ मौत एक बार मिलती है!*
*जिंदगी हर रोज मिलती है !!*
*बस जीना आना चाहिए!!*
Nice Shayari collection bhai.
ReplyDeletesad shayari
Sir आपने बहुत अच्छे से Rahat indori Shayari post Explain कि हैं। Very Nice post
ReplyDeletenice post
ReplyDeletewww.koshidastak.com