Who does not know the name of Gulzar ji in Hindi and Urdu world, his full name is Sampooran Singh Kalra, he has written many songs for many Hindi films as well, due to which he is known all over the world today. He was born on 18 August 1934 in Pakistan, he has written his compositions in Hindi, Urdu and Punjabi languages. That is why we tell you about some of the poetry written by Gulzar ji, which is very important for you, by reading which you can know a lot about them.
सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवा-डोल कभी
फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
सहर न आई कई बार नींद से जागे
थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को
मिरी कहानी सुना रहा था
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ए’तिबार किया
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
गो बरसती नहीं सदा आँखें
अब्र तो बारा मास होता है
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ
आग में क्या क्या जला है शब भर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आंख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
जिस की आंखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएं भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है सांसें निकलें
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आंखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आंख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
जिस की आंखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएं भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आंखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
Great Shayari
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Great
ReplyDeleteNo comment on these lines
ReplyDeleteJust salute.
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Nice post hindi shayri photo ke sath
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